पूरा का पूरा कश्मीर हमारा था, है और रहेगा... क्या बात करते हैं आप ?

अश्विनी सिंह
5 अगस्त, 2019 भारत के लोगों के लिए एक अविस्मरणीय पल था. वजह थी, संविधान की एक धारा आम भाषा में जिसे 'धारा 370' के नाम से जाना जाता है. उसे भारत सरकार ने एक बिल लाकर निरस्त कर दिया. कारण बताया कि इस धारा की वजह से धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले हमारे कश्मीर को यह हमारे देश से ही अलग कर रहा था. वैसे तो इस धारा का प्रयोग तत्कालीन समय में कश्मीर के हालात को देखते हुए प्रयोग में लाया गया था. लेकिन, बाद में वहां के भ्रष्ट नेता, अलगाववादी समूह, कट्टर मौलवियों ने अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक लाभ के लिए इसे ढाल के रूप में इस्तेमाल करना शुरु कर दिया. इससे उन नेताओं, अलगाववादियों और मौलवियों की तो दुकान काफी अच्छी चल रही थी लेकिन, कश्मीर की स्थिति दिन—प्रतिदिन बिगड़ती चली गयी। 2019 में भारत सरकार ने इस पर एक साहस भरा कदम उठाया और आर्टिकल 370 के निरस्त कर दिया।
इसी कहानी को आधार मानकर बनायी गयी है आदित्य सुहास जम्बाले द्वारा निर्देशित फिल्म 'आर्टिकल 370' जिसे प्रोड्यस किया है 'उरी' फिल्म के निर्देश आदित्य धार ने। आदित्य धार की फिल्म उरी देखकर मुझे यह उम्मीद थी कि फिल्म चाहे जैसी भी हो पर तकनीकी पटल पर काफी उम्दा होगी और फिल्म इस पर खड़ी भी उतरी।

कैसी है फिल्म की कथा, पटकथा और निर्देशन?
फिल्म के कहानी का आधार धारा 370 को बनाया गया है। फिल्म के शुरुआत में अजय देवगन के आवाजा में संक्षिप्त रूप से 'धारा 370' का इतिहास वहां के राजनेताओं, कट्टरपंथियों अलगाववादी समूह पर केन्द्रित कुछ विशेष घटनाओं को भी बताया गया है जिसमें वुरहान वानी की सेना द्वारा चलाये गये आॅपरेशन में मारे जाने पर वहां के राजनेआतों व कट्टरपंथियों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए इसे राजनीतिक रूप देकर पूरे कश्मीर में अशांति फैलाने के प्रयास को मुख्य रूप से केन्द्रित किया गया है। कहानी भी यहीं से शुरु होती है। यामी गौतम उस आॅपरेशन को लीड करती हैं और अपने सीनियर अधिकारी के आदेश की अवहेलना करते हुए वुरहान वानी को मार गिराती है। जिस कारण उन्हें वापस दिल्ली भेज दिया जाता है। फिर कुछ दिन बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से उसे बुलावा आता है और उन्हें कश्मीर वापस जाने के लिए कहा जाता है। इस बार उन्हें स्पेशल पावर दिया जाता है जिसमें उसे सीधे पीएमओ को रिपोर्ट करने को कहा जाता है। वह पीएमओ के संयुक्त सचिव (जिसका किरदार निभाया है साउथ फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर अभिनेत्री प्रियामनी ने) को वहां के हालात से अवगत कराती हैं कि कैसे वहां के कट्टरपंथी, राजनेता, अलगाववादी छोटे—छोटे बच्चे, औरत और बूढ़ों तक को पैसा देकर सेना पर पथराव कराया जाता है। जहां वह एक डॉयलाग भी बोलती हैं कि — ''कश्मीर में आतंकवाद एक धंधा बन गया है'' जो काफी प्रभावी लगता है। पीएमओ द्वारा आश्वस्त करने के बाद वह वापस वहां जाती है। फिर वहां से 'आर्टिकल 370' के निरस्त होने तक के सफर और उसमें वैसे अनसंग राजनेता, वकील, ब्यूरोक्रेट्स की उस कड़ी मेहनत और साहसिक कार्य को दिखाया जाता है जिसकी कहानी मीडिया में और हमारे सामने बिरले ही आती है। जिससे हम उन्हें जान भी नहीं पाते हैं। धारा 370 के साथ—साथ यामी गौतम के जीवन की कहानी भी समानांतर चलती है और कश्मीर से उसका क्या रिश्ता है? ये आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगी।
अब बात फिल्म के पटकथा की:— फिल्म की पटकथा शानदार हैं। कहीं से ऊबाऊ नहीं है। 2 घंटे 40 मिनट की यह फिल्म कब खत्म हो जाती है पता भी नहीं चलता। डायलॉग्स काफी अच्छे लिखे गये हैं। निर्देशन काफी अच्छा है। चूंकि हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि जिस संविधान और कानून की दुहाई हमारे नेता आये—दिन देते रहते हैं उस कानून की भाषा इतनी कठिन है कि इसे समझना आम आदमी के वश से बाहर हो जाता है। फिर भी ऐसे कठिन विषय को भी सरलता से दिखाने का प्रयास किया गया है। हां कुछ जगह क्रिएटिव लिबर्टी जरूर ली गयी है, लेकिन वह कहीं से फिल्म को प्रभावित नहीं करती है। चूंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर निर्देशक फिल्म के साथ कुछ ऐसा कर बैठते हैं जिससे फिल्म अपनी मुख्य धारा से डायवर्ट हो जाती है और कई बार विवादों का विषय भी बन जाती है। हालांकि बहुत बार यह नियोजित भी होती है फिल्म की प्रसिद्धि और आर्थिक लाभ बढ़ाने के लिए। लेकिन, यहां ऐसा नहीं है। सभी पात्र को उतना ही दिखाया गया है जितना उसकी जरूरत थी। चाहे वह प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का ही किरदार क्यों न हो। फिल्म को इतना संतुलित रखा गया है कि फिल्म देखने के बाद आप कतई यह नहीं कह सकते हैं कि यह एक प्रोपोगेंडा फिल्म है जिसे सरकार के ब्रांडिंग के लिए लाया गया है। हां विपक्ष इसके रिलीज के समय को लेकर आक्षेप जरूर लगा सकती है। लेकिन, उससे इनको ज्यादा फायदा होने वाला नहीं है, क्योंकि ये रायता भी उनलोगों के द्वारा ही फैलाया गया था, जिसे इस सरकार ने साफ किया।
बात अभिनय की
फिल्म की मुख्य अभिनेत्री यामी गौतम का अभिनय काफी शानदार है। भारत में महिला प्रधान फिल्में बहुत कम बनती हैं। चूंकि निर्माता में यह विश्वास की भारी कमी होती है कि अभिनेत्री के नाम पर फिल्म अच्छा बिजनेस कर पायेगी। भारत में फिल्म हीरो के नाम पर ज्यादा चलती है न कि हिरोईन के नाम पर। थोड़ा पीछे जायें तो मदर इंडिया सरीखे इक्के—दुक्के फिल्म और 21वीं शदी में 'मैरी कॉम', 'डर्टी पिक्चर' और मनिकर्णिका जैसी कुछेक फिल्में ही बॉक्स आॅफिस पर अपना कमाल दिखा पाईं बांकी की फिल्में जो हिरोईन बेस्ड थी बॉक्स आॅफिस पर औंधेमुंह गिर गई। जिसमें एक उदाहरण के तौर पर यामी गौतम अभिनीत 'ए थर्सडे' फिल्म को देखा जा सकता है। इस फिल्म की प्रशंसा तो हुई पर कमाई नहीं। ऐसी कई फिल्में है जिसकी क्रिटिक्स द्वारा सराहना जरूर की गई पर वह पैसा नहीं कमा पायी। हां वर्तमान परिदृश्य में ओटीटी पर महारानी, आर्या जैसे वेबसीरीज को देखने के बाद निर्माता—निर्देशक में अब यह विश्वास जगने लगा है कि हिरोईन बेस्ड फिल्में भी अब जनता पसंद करने लगी है बस आपके कंटेंट में दम हो। अब वापस आते हैं फिल्म के अभिनय पर। तो यामी गौतम ने शायद अपने फिल्मी जीवन में अब तक का सर्वेश्रेष्ठ प्रदर्शन इस फिल्म में किया है। बांकी उनके सारे सपोर्टिंग कास्ट का अभिनय भी सराहनीय है। चाहे प्रधानमंत्री के किरदार में अरूण गोविल हों या गृह मंत्री के किरदार में किरन करमाकर, सबने अपने किरदार के साथ पूर्णत: न्याय किया है।
किरन करमाकर ने 5अगस्त, 2019 में भारत के गृहमंत्री द्वारा 'धारा 370' पर लाये गये बिल के दौरान दी गई भाषण को हु—बहू पर्दे पर उतार दिया है। उनका यह अभिनय काफी सराहनीय है।
फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक सामान्य है जो कहीं कहीं ही प्रभावी लगता है।
कुल मिलाकर यह कहें तो 'आर्टिकल 370' एक अच्छी फिल्म है। इस फिल्म को बनाने के लिए शोध—कार्य भी अच्छा किया गया है। भारत के हर वर्ग के लोग को यह फिल्म एकबार जरूर देखना चाहिए। आप अपने बच्चों के साथ भी इस फिल्म को देख सकते हैं और उसे इस बारे में बता सकते हैं ताकि इस विषय पर उसका ज्ञान बढ़ सके।