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झारखंड के सरकारी अस्पतालों की बदहाली उजागर, CAG रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे

विधानसभा के बजट सत्र के दौरान भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (CAG) ने झारखंड के स्वास्थ्य विभाग और भवन निर्माण मजदूरों के कल्याण बोर्ड की ऑडिट रिपोर्ट सदन में पेश की। इसके बाद राज्य की प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने प्रेस वार्ता कर रिपोर्ट की प्रमुख बातें साझा कीं। रिपोर्ट में सामने आए निष्कर्षों ने राज्य की चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं और सरकारी लापरवाही की पोल खोल दी।

स्वास्थ्य विभाग की खामियां: दवाओं की बर्बादी और अनियमितताएं
CAG की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के अस्पतालों में रखी गई रेमडेसिविर इंजेक्शन बड़ी मात्रा में एक्सपायर हो गई, जिससे महामारी के समय गंभीर मरीजों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं, बिना किसी दस्तावेज़ के हजारों वायल दो निजी एजेंसियों को सौंप दी गई, जिसकी सूचना तक ड्रग्स कंट्रोलर को नहीं दी गई थी।

चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी
रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि झारखंड में डॉक्टरों और नर्सों की बेहद कमी है। राज्य में मेडिकल अफसर और विशेषज्ञ डॉक्टरों के 6,334 पद स्वीकृत हैं, लेकिन सिर्फ 2,210 डॉक्टर ही कार्यरत हैं। राष्ट्रीय औसत के अनुसार 10,000 लोगों पर 37 डॉक्टर होने चाहिए, लेकिन झारखंड में यह संख्या मात्र 4 है। नर्स और पारा मेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी के कारण मरीजों को उचित उपचार नहीं मिल पा रहा है।

राज्य के छह मेडिकल कॉलेजों में 48% फैकल्टी और 45% गैर-शैक्षणिक पद खाली पड़े हैं। आयुष कॉलेजों में शिक्षकों की कमी 60% से 66% तक दर्ज की गई, जबकि होम्योपैथी कॉलेजों में यह आंकड़ा 71% से 87% तक पहुंच गया।

अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव
CAG की रिपोर्ट बताती है कि जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं तक नहीं हैं। जिला अस्पतालों में आपातकालीन सेवाओं की स्थिति दयनीय है, कई अस्पतालों में ICU तक उपलब्ध नहीं है। रिपोर्ट में बताया गया कि 18% गर्भवती महिलाओं को ANC का पूरा चक्र नहीं मिला, जबकि 29% महिलाओं को टेटनस का दूसरा टीका भी नहीं दिया गया। 22% गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोली नहीं मिली, और कई मामलों में प्रसव के 48 घंटे के अंदर महिलाओं को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

दवाओं की खरीद में घोटाला और अनियमितताएं
CAG ने खुलासा किया कि झारखंड मेडिकल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एंड प्रोक्योरमेंट कॉर्पोरेशन (JMHIDPCL) के पास 1,395.67 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध होने के बावजूद 2016 से 2022 के बीच सिर्फ 279.39 करोड़ (20%) रुपये की दवा और उपकरण खरीदे गए। यानी 77% से 88% आवश्यक दवाएं खरीदी ही नहीं गईं, जिससे अस्पतालों में जरूरी दवाओं की भारी कमी बनी रही। ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 और 2021-22 के बीच 9.55 करोड़ रुपये की दवाएं एक प्रतिबंधित कंपनी से खरीदी गईं।

मजदूर कल्याण बोर्ड में भी अनियमितताएं
CAG रिपोर्ट ने भवन निर्माण मजदूरों के कल्याण बोर्ड की खामियों को भी उजागर किया। रिपोर्ट के मुताबिक, कल्याण बोर्ड के पास बड़ी राशि उपलब्ध होने के बावजूद मजदूरों के कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च नहीं किया गया। लाखों मजदूरों का अभी तक निबंधन नहीं किया गया, जिससे वे पेंशन, हाउसिंग लोन और अन्य सरकारी लाभों से वंचित रह गए।

ऑडिट टीम के निरीक्षण में सामने आया कि निर्माण स्थलों पर मजदूरों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए। इतना ही नहीं, 504 करोड़ रुपये की सेस राशि झारखंड सरकार द्वारा वेलफेयर बोर्ड को ट्रांसफर नहीं की गई।