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ठेठ नागपुरी लोकगायन की जीवंत विरासत: 'भिनसरिया के राजा' महावीर नायक को मिला पद्मश्री सम्मान

 
झारखंड की माटी से जुड़े और लोकगायन की आत्मा माने जाने वाले महावीर नायक को मंगलवार को भारत सरकार ने देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाज़ा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली में आयोजित समारोह में उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किया।
सात दशकों से लोकगायन के सेवक
82 वर्षीय महावीर नायक पिछले लगभग 70 वर्षों से पारंपरिक नागपुरी गीतों को संरक्षित करने और उन्हें आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। उन्होंने न केवल 400 से अधिक मौलिक गीतों की रचना की है, बल्कि 5000 पारंपरिक गीतों का संकलन भी किया है। दो हजार से अधिक गीतों को वे अब तक मंचों पर प्रस्तुत कर चुके हैं। रांची जिले के कांके प्रखंड स्थित उरुगुट्टू गांव में जन्मे महावीर नायक वर्तमान में हटिया के नायक मोहल्ला में निवास करते हैं।
घासी परिवार से निकले लोकध्वनि के पुजारी
26 मार्च 1942 को रामनवमी के दिन जन्मे महावीर नायक के पिता खुद्दू नायक भी एक प्रख्यात लोकगायक और मर्दानी झूमर नर्तक थे। अपने पिता से विरासत में लोकगायन सीखा और गांव के अखाड़ों से इसकी शुरुआत की। 1963 में हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (HEC) में नौकरी के साथ उन्होंने लोकगीतों की रचना शुरू की।
नागपुरी संगीत का संरक्षण और प्रचार
महावीर नायक की गायकी पारंपरिक नागपुरी ठेठ संगीत पर केंद्रित रही है। 1962 से उन्होंने नागपुरी गीतों का मंचीय प्रस्तुतीकरण शुरू किया और 1976 से वे नियमित मंचों पर गा रहे हैं। 1977 से उन्होंने कार्यक्रमों का आयोजन भी शुरू किया ताकि बुजुर्ग गायकों को भी मंच मिल सके। 1984 में उन्होंने रेडियो और टीवी पर अपनी कला का प्रदर्शन किया और देशभर में अपनी पहचान बनाई।
‘भिनसरिया कर राजा’ की उपाधि और गीतों की विशेषता
सिमडेगा जिले के लोगों ने उन्हें ‘भिनसरिया कर राजा’ की उपाधि दी। उनके गीत अश्लीलता से दूर, सामाजिक सरोकार, नैतिक मूल्यों और प्रकृति के सौंदर्य पर आधारित होते हैं। उन्होंने 1985 में पद्मश्री मुकुंद नायक और अन्य कलाकारों के साथ ‘कुंजबन’ नामक संस्था की स्थापना की, जिसका उद्देश्य पारंपरिक नागपुरी संगीत को नई पीढ़ी तक पहुंचाना था।
साहित्यिक योगदान और शास्त्रीयता से रिश्ता
1993 में उन्होंने ‘दर्पण’ नामक पत्रिका की शुरुआत की, जिसमें पुराने कवियों के गीतों को प्रकाशित किया गया। उनका मानना है कि नागपुरी संगीत, शास्त्रीय संगीत की ही एक लोकशैली है, जिसमें झूमर, फगुआ, उदासी, पावस जैसे राग-भाव समाहित होते हैं। इसमें संस्कृति, साहित्य और नैतिकता की गहराई दिखाई देती है।
देश से बाहर भी गूंजा सुर
महावीर नायक ने अपने संगीत से न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी नागपुरी गायन की पहचान बनाई है। पद्मश्री मुकुंद नायक और डॉ. रामदयाल मुंडा के साथ उन्होंने ताइवान जैसे देशों में प्रस्तुति दी। उन्हें भारत लोकरंग महोत्सव (2014) में लोककला रत्न से नवाज़ा गया, और 2019 में स्वर्ण जयंती समारोह में भी उन्हें विशेष सम्मान मिला।
प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित
महावीर नायक को 2022 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला और 2025 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। ठेठ नागपुरी गायकी और भिनसरिया राग के अप्रतिम गायक के रूप में वे आज भी लोकसंस्कृति के जीवंत प्रतीक हैं।