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बिहार में बदलाव की गाथा लिख रही सीवान की लाडली बिटिया, लंदन से प्राप्त की है उच्च शिक्षा

 

लंदन से उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर एक लड़की के सामने देश-दुनिया में बहुत कुछ करने के दरवाजे खुले थे. लेकिन उसने अपने गांव में बदलाव लाने का रास्‍ता चुना. गांव की महिलाओं को आर्थिक आत्‍मनिर्भरता की राह दिखाई तो वहीं पुरुषों को भी रोजगार दिए. जिसे जिस काम में रुचि थी उसे उसी काम के लिए तैयार किया. हम बात कर रहे हैं सिवान के जीरादेई प्रखंड के नरेंद्रपुर गांव की रहने वाली सेतिका सिंह की. सेतिका अपने पिता संजीव कुमार की स्‍वयंसेवी संस्‍था 'परिवर्तन' के तहत पहले चरण में पांच किमी के दायरे में आने वाले 21 गांवों को चुनकर काम शुरू किया. सेतिका कि कोशिश का ही नतीजा है आज छह हजार से अधिक लोग अपने गांव में ही अपना रोजगार कर रहे हैं. सेतिका ने हाल ही में 'सबरंगी' के तहत महिलाओं के जीवन में रंग भरने की पहल की है. इसका उद्देश्‍य महिलाओं के तैयार उत्पादों को उचित मूल बाजार में दिलाना है. वहीं सेतिका के प्रयास से इलाके के करीब तीन दर्जन युवा फुटबाल. साइकलिंग तथा कबड्‌डी में खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पहुंच चुके हैं.

सबसे पहले बात सेतिका सिंह की मूल रूप से जीरादेई प्रखंड के नरेंद्रपुर गांव की रहने वाली सेतिका के पिता संजीव कुमार 'तक्षशिला एजुकेशन सोसाइटी' के तहत 'डीपीएस स्कूल' और 'परिवर्तन' नाम से स्‍वयंसेवी संस्‍था चलाते हैं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से सामाजिक नीति और विकास (विशेष रूप से एनजीओ) में पोस्‍ट ग्रेजुएट करने के बाद सेतिका ने पिता के एनजीओ की जिम्‍मेदारी उठायी. फिर साल 2009 में गांव की आठ एकड़ भूमि में 'परिवर्तन' का कैंपस खोला. दो साल बाद 2011 में यहां सभी काम शुरू कर दिए गए.

कैंपस में स्मार्ट क्लास चलते हैं. कंप्यूटर रूम व स्‍कूल से लेकर सिलाई-कढ़ाई तक की व्यवस्था है. परिसर में लूम की ट्रेनिंग, सिलाई और उनकी मार्केटिंग की पूरी ट्रेनिंग लगातार चल रही है. इनमें महिलाओं की बड़ी संख्या है. यहां हर महीने के काम का खाका तैयार कर उसके अनुसार काम होता है. सेतिका के काम का बड़ा केंद्र पास का जमालहाता गांव बना है. कभी यहां के हैंडलूम की चादर देशभर में प्रसिद्ध थी. लेकिन कालक्रम में गांव के हुनरमंद बुनकर मुंबई और लुधियाना जैसे बड़े शहर चले गए. साथ ही गांव के लूम ठप पड़ गए. अब 'परिवर्तन' ने यहां हैंडलूम का काम फिर शुरू करा दिया है. सेतिका कहती हैं कि एक महिला को सशक्‍त करने से पूरा परिवार सशक्‍त होता है. ऐसे में जरूरी है कि उसे काम के साथ परिवार को देखने में भी सहूलियत मिले. अगर माता-पिता दोनों काम करेंगे तो बच्चों का क्‍या होगा? इसे देखते हुए 'परिवर्तन' कैंपस में ही आंगनबाड़ी केंद्र, स्कूल और साइंस प्रयोगशाला खोले गए हैं. माता-पिता दोनों के काम पर बाहर रहने की स्थिति में बच्चे कैंपस में ही आधुनिक पढ़ाई करते हैं. यहां महिलाएं दो शिफ्टों में काम करती हैं. ताकि व परिवार को भी समय दे सकें.

सेतिका की पहल खेलकूद, गायन व अभिनय के क्षेत्रों में भी रंग लाई है. परिवर्तन के बैनर तले प्रतिभाओं को चुनकर खिलाडि़यों व कलाकारों को ट्रेनिंग दिलवायी. परिणाम सामने है. यहां से फुटबाल में 15. साइकलिंग में नौ तथा कबड्‌डी में नौ खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुके हैं. गांव में गाने व अभिनय करने वालों को लोक कलाकार में बदलकर उन्‍हें तक्षशिला एजुकेशन सोसाइटी के माध्‍यम से पटना समेत कई बड़े शहरों में मंच और काम दिलाया.