राजधानी रांची में रथ यात्रा की तैयारी जोरों पर, तीन सदियों से एक ही परिवार निभा रहा है रथ निर्माण की परंपरा

राजधानी रांची का धुर्वा क्षेत्र हर वर्ष आषाढ़ महीने में महाप्रभु जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा का साक्षी बनता है। यह धार्मिक यात्रा ओडिशा के पुरी में होने वाली रथयात्रा की तरह ही गरिमा और श्रद्धा से परिपूर्ण होती है। जगन्नाथपुर मंदिर, जो एक जीवित पर्वत ‘नीलांचल’ पर स्थित है, इस आयोजन का मुख्य केंद्र होता है। इस वर्ष रथयात्रा का आयोजन 27 जून को किया जाएगा, जबकि महाप्रभु की वापसी यात्रा अर्थात् "घूरती रथ यात्रा" 6 जुलाई को निकाली जाएगी।
रथ निर्माण कार्य तेजी से जारी है। कारीगर महावीर लोहरा के अनुसार, 25 जून तक रथ पूरी तरह बनकर तैयार हो जाएगा। इसके बाद 27 जून को पूजा-अर्चना के साथ महाप्रभु जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की रथयात्रा शुरू होगी। इस पावन यात्रा में रांची सहित पूरे झारखंड से भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल होंगे।

श्रद्धा से जुड़ा विशाल जनसमूह
यह रथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है। यात्रा के दौरान एक विशाल मेला आयोजित होता है, जिसमें न केवल झारखंड बल्कि अन्य राज्यों से भी दुकानदार हिस्सा लेते हैं। मिठाई, खिलौने, हस्तशिल्प और मनोरंजन की अनेक सामग्री इस मेले में उपलब्ध रहती है।
रोजगार का सुनहरा अवसर
इस आयोजन से स्थानीय व्यापारियों को भी काफी लाभ होता है। बच्चों के लिए लगे झूले, रंग-बिरंगे स्टॉल और पारंपरिक वस्तुएं इस मेले को जीवंत बना देते हैं। दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव से हजारों लोगों को रोजगार मिलता है।
परंपरा और आधुनिकता का संगम
रथ यात्रा में जहां एक ओर पारंपरिक रथ निर्माण की सदियों पुरानी परंपरा जीवित है, वहीं दूसरी ओर प्रशासन की आधुनिक व्यवस्था भी देखने को मिलती है। सुरक्षा के लिए पुलिस बल तैनात किया जाता है, स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं और पेयजल की समुचित व्यवस्था भी की जाती है। आयोजन में धर्माचार्य, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रशासन मिलकर आयोजन को सफल बनाते हैं।
लोहरा परिवार की अमूल्य सेवा
रथ निर्माण की यह जिम्मेदारी वर्षों से लोहरा परिवार निभाता आ रहा है। लकड़ी की नक्काशी से लेकर सजावट तक, हर भाग में उनके समर्पण की झलक मिलती है। उनका यह योगदान रथ यात्रा को केवल धार्मिक आयोजन न बनाकर एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रस्तुत करता है।
'हमारे पूर्वजों ने जो सेवा शुरू की थी, उसे हम एक कर्तव्य की तरह निभाते हैं. यह केवल रथ बनाना नहीं, बल्कि भगवान की यात्रा को संभव बनाना है': महावीर लोहरा, कारीगर
ऐतिहासिक मंदिर का गौरवशाली अतीत
जगन्नाथपुर मंदिर का निर्माण वर्ष 1691 में नागवंशी शासक ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव द्वारा कराया गया था। यह मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर की शैली में बना है। तीन ओर से तालाबों और घने वृक्षों से घिरा यह मंदिर न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है बल्कि एक जीवंत धार्मिक केंद्र भी है। मंदिर से लगभग 500 मीटर दूर स्थित मौसीबाड़ी मंदिर तक रथ यात्रा जाती है, जहां विशेष पूजा और उत्सव होते हैं।