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Ranchi: इंडिया का नाम बदलकर भारत रखने की चर्चा के बाद झारखंड में राजनीतिक बयानबाजी तेज

इंडिया का नाम बदलकर भारत रखने की चर्चा के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलें तेज हो गयी है। पूरे देश भर में चर्चा का बाजार गर्म हो गया है। अगर ऐसा होगा तो देश स्तर के इंडिया नामित सारे सरकारी दस्तावेज एवं स्थान और सारी चीज जद मे आकर प्रभावित होगी। वैसे तो आधिकारिक तौर पर इस बात का प्रमाण और पुष्टि अभी नहीं हो हुई है। दरअसल इस चर्चा को हवा दी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के निमंत्रण पत्र ने. जी-20 समिट के लिए 9 सितंबर को होने वाले रात्रि भोज के लिए जो निमंत्रण पत्र राष्ट्रपति भवन की तरफ से देश के नेताओं को भेजे गए हैं, उनमें आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' शब्द को बदला गया है। इस बार के निमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ भारत शब्द का इस्तेमाल किया गया है। अब पूरा विवाद इसी पर है। ऐसे में अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि संसद के विशेष सत्र में INDIA का नाम बदलकर भारत किया जा सकता है. विपक्षी सदस्यों ने इस पर नाराजगी जाहिर की और कुछ नेताओं ने कहा कि सत्तारूढ़ दल I.N.D.I.A. गठबंधन से चिंतित है। वहीं इस चर्चा के को लेकर अब झराखंड में भी राजनीतिक बयान बाजी का दौरा शुरू हो चुका है।

झारखंड प्रदेश के सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता का कहना है कि इंडिया नाम से बने घटक दल के बाद से इस नाम से डर का नतीजा है कि इस प्रकार के नाम में परिवर्तन करने की बात आ रही है। केंद्र सरकार की पार्टी एक प्रकार से राजनीतिक आपदा को अवसर में बदलने का काम करने पर लगी हुई है। इस प्रकार के नाम बदलने से करोड़ों रुपए का खर्चा होगा जो सुनियोजित साजिश होगा।

वहीं झारखंड प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी के घटक दल में रहे कांग्रेस के प्रवक्ता का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी को भीमराव अंबेडकर के बनाए गए संविधान से दिक्कत हो रही है, क्योंकि संविधान में साफ इंगित है कि इंडिया और भारत एक ही नाम है केंद्र शासित पार्टी किस प्रकार के मुद्दे को लाकर देश में चल रहे जन मुद्दों से ध्यान भटकने का कोशिश कर रहा है।

वहीं भाजपा प्रदेश प्रवक्ता का कहना है कि पौराणिक ग्रंथ में भी भारत का नाम आता है एवं औपनिवेशिक काल से दिए गए नाम के प्रति इतना लगाओ क्यों है। इस प्रकार के औपनिवेशिक काल में दिए गए नाम एक प्रकार से गुलामी के जंजीर को दर्शाता है जिसे देश लंबे समय तक ढो नहीं सकता।


 

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